तेरी हंसी से हंसती है जिन्दगी;
तेरे रोने से रो जाती है जिन्दगी।
अब मेरे टूटे दिल को मरहम की जरूरत नहीं;
अब तो हर मोड़ पर चोटें खाती है जींदगी।
क्यों करते हो हमारी फ़िक्र मेरे दिलबर;
दर-दर
पर ठोकरें पाती है जिन्दगी।
तेरे साथ बिताये लम्हों के सहारे;
हर तन्हा रात को सजाती है जिन्दगी।
सोचकर यही की तू आएगी वापस;
तेरे रहने के लिए आशियाँ बनती है जिन्दगी।
आज क्या हुआ मेरे दिलबर;
तेरे आने की आहट सताती है जिन्दगी।
बुधवार, 7 अप्रैल 2010
सोमवार, 22 मार्च 2010
हादसा
रोज होते है,हादसे.
शहर में,चोराहो पर, सड़क पर.
हो जाता है भयावह माहोल वहां पर.
होती है चीख-पुकार हर तरफ.
हम भी देखते हैं अक्सर ये मंजर.
और चल देते हैं,
'बहुत बुरा हुआ ' कहकर .
क्योकि हमे है जल्दी अपनी मंजिल पर पहुचने की.
हमे नहीं है फुरसत वहां पर मदद करने की.
नहीं होती है जागृत मानवता हमारी,
उस भयावह मंजर को देख कर.
जब होता है हादसा,
किसी हमारे के साथ,
तो याद आती है मानवता हमको.
लगते हैं, हम हर किसी से मदद की गुहार .
अब नहीं है जल्दी मंजिल पर पहुचने ही,
अब फुरसत है हमे इस मंजेर पर सोचने की.
शहर में,चोराहो पर, सड़क पर.
हो जाता है भयावह माहोल वहां पर.
होती है चीख-पुकार हर तरफ.
हम भी देखते हैं अक्सर ये मंजर.
और चल देते हैं,
'बहुत बुरा हुआ ' कहकर .
क्योकि हमे है जल्दी अपनी मंजिल पर पहुचने की.
हमे नहीं है फुरसत वहां पर मदद करने की.
नहीं होती है जागृत मानवता हमारी,
उस भयावह मंजर को देख कर.
जब होता है हादसा,
किसी हमारे के साथ,
तो याद आती है मानवता हमको.
लगते हैं, हम हर किसी से मदद की गुहार .
अब नहीं है जल्दी मंजिल पर पहुचने ही,
अब फुरसत है हमे इस मंजेर पर सोचने की.
सोमवार, 15 मार्च 2010
गजल
मेरी बर्बादी का वो जशन मनाएंगे,
रोयेगा ये दिल, पर हम दुनिया को हसाएंगे।
दहल जायेगा दिल उनका,
जब दुनिया वाले उन्हें
मेरी मौत का किस्सा सुनाएंगे।
हम सुनाएंगे किस्से उनकी बेबफाई के,
वो भी किस्से अपनी बेबफाई के
साथ मेरे गुनगुनाएंगे।
करेंगे वो याद हमको रह-रहकर,
जब दुनिया हम उनकी छोड़ जाएंगे।
लगाकर आग मेरे घर को,
मेरे जाने के बाद ,
वो घर रकिवों का बसाएंगे.
रोयेगा ये दिल, पर हम दुनिया को हसाएंगे।
दहल जायेगा दिल उनका,
जब दुनिया वाले उन्हें
मेरी मौत का किस्सा सुनाएंगे।
हम सुनाएंगे किस्से उनकी बेबफाई के,
वो भी किस्से अपनी बेबफाई के
साथ मेरे गुनगुनाएंगे।
करेंगे वो याद हमको रह-रहकर,
जब दुनिया हम उनकी छोड़ जाएंगे।
लगाकर आग मेरे घर को,
मेरे जाने के बाद ,
वो घर रकिवों का बसाएंगे.
शुक्रवार, 5 मार्च 2010
गज़ल
बसायी थी दुनिया प्यार की;
वो आज वीरानी हो गयी।
चाहा था जिसे जां से ज्यादा ;
वो अब वेगानी हो गयी।
थी कल तक पागल जो दुनिया के लिए;
वो आज दीवानी हो गयी।
थी बच्ची जो कल तक;
वो शायद शयानी हो गयी।
थामा हाथ उसने रकिवों का;
उनकी जिन्दगी अब सुहानी हो गयी।
करना प्यार की बातें;
शायद अब बेईमानी हो गयी।
वो आज वीरानी हो गयी।
चाहा था जिसे जां से ज्यादा ;
वो अब वेगानी हो गयी।
थी कल तक पागल जो दुनिया के लिए;
वो आज दीवानी हो गयी।
थी बच्ची जो कल तक;
वो शायद शयानी हो गयी।
थामा हाथ उसने रकिवों का;
उनकी जिन्दगी अब सुहानी हो गयी।
करना प्यार की बातें;
शायद अब बेईमानी हो गयी।
बुधवार, 3 मार्च 2010
एक हिंदी वेबसाइट
मुरादाबादी अड्डा के प्रिय पाठको मै एक हिंदी वेबसाइट का निर्माण करने जा रहा हूँ। जहाँ पर उन लोगो को मंच मिलेगा जो कुछ लिखते है परन्तु उन्हें पढने बाले कम मिलते हैं। आप भी इस कम मै मेरा साथ दे सकते है। मै आप के सहयोग की कामना करता हूँ।
शनिवार, 13 फ़रवरी 2010
खान हिट शिवसेना फ्लॉप
शुक्रवार को 'माय नेम इज खान' के रिलीज होते ही शिवसेना बोल्ड हो गयी । शिवसेना की सभी धमकियाँ धरी की धरी रह गयीं। इससे पहले राहुल गाँधी को मुंबई आने की धमकी के बाद भी शिवसेना कुछ नहीं कर पाई थी और अब खान की रिलीजिंग को रोकने की धमकी के बाद फिल्म का प्रदर्शन सुचारू रूप से होने के बाद यह शिवसेना के लिए बुरी खबर है। खान की रिलीजिंग पर बबाल खड़ा करने वाली शिवसेना को कुछ भी फायदा होने वाला नहीं है। परन्तु इससे किंग खान यानि शाहरुख़ खानको अब कोई भी बॉलीवुड का किंग होने से नहीं रोक सकता। इस बबाल से जो पब्लिसिटी माय नेम इज खान को मिल गयी है; यह तो खान साहब अब तक अपनी फिल्म को नहीं दिला पाए थे।
अगर अब यह फिल्म रिकार्ड तोड़ कमाई कर दे तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं होगा। अब बात की जाये फिल्म के बारे में तो 9/11 के हादसे के उपर बनी है यह फिल्म। इसमें शाहरुख़ खान ने रिजवान का किरदार निभाया है जो बचपन से 'एसपर्जर' नामक बीमारी का शिकार है। रिजवान काफी बुद्धिमान है ; लेकिन शोर तथा कुछ एक रंगों से उसे बहुत नफरत है। अमेरिका जाने के बाद रिजवान के जीवन मे एक बच्चे की माँ मंदिरा (काजोल) आ जाती है। इसी बीच 9/11 की घटना हो जाती है । इस घटना से भड़क जाती है, नस्लीय हिंसा ! जिस का शिकार रिजवान ही नहीं बल्कि नाम के बाद 'खान' लगने से बच्चे सैम को अपनी जन से हाथ धोना पड़ता है रिजवान इस सबसे परेसान हो कर अमेरिका के रास्ट्रपति से मिलना चाहता है और उनसे कहता है "माय नेम इज खान, बट आय ऍम नोट टेररिस्ट................." और अंत में वो सफल भी हो जाता है।
अगर अब यह फिल्म रिकार्ड तोड़ कमाई कर दे तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं होगा। अब बात की जाये फिल्म के बारे में तो 9/11 के हादसे के उपर बनी है यह फिल्म। इसमें शाहरुख़ खान ने रिजवान का किरदार निभाया है जो बचपन से 'एसपर्जर' नामक बीमारी का शिकार है। रिजवान काफी बुद्धिमान है ; लेकिन शोर तथा कुछ एक रंगों से उसे बहुत नफरत है। अमेरिका जाने के बाद रिजवान के जीवन मे एक बच्चे की माँ मंदिरा (काजोल) आ जाती है। इसी बीच 9/11 की घटना हो जाती है । इस घटना से भड़क जाती है, नस्लीय हिंसा ! जिस का शिकार रिजवान ही नहीं बल्कि नाम के बाद 'खान' लगने से बच्चे सैम को अपनी जन से हाथ धोना पड़ता है रिजवान इस सबसे परेसान हो कर अमेरिका के रास्ट्रपति से मिलना चाहता है और उनसे कहता है "माय नेम इज खान, बट आय ऍम नोट टेररिस्ट................." और अंत में वो सफल भी हो जाता है।
बुधवार, 3 फ़रवरी 2010
हम पर ये एतबार करो
हम है आप के हम पर ये एतबार करो;
ना जाये कहीं और हमे इतना प्यार करो ।
हमे चाहिए तुम्हारे साथ चैनो- सुकून ;
हमारे दिल को इस तरह न बेकरार करो।
अब जाये कहां हम तुम बिन;
सितमगर ये सितम हम पर ना बार -बार करो।
हमें है आश आज भी की तुम हो हमारे ;
अब तुम ही दूर ये हमारा खुमार करो ।
बहने दो ये अश्कों के धारे ;
छेड़ कर हमे न बहार ये दिल का गुबार करो।
लो अब जा रहे हैं छोड़कर तुम्हारी दुनिया ;
चलो अब तो अपनी ख़ुशी का इजहार करो।
ना जाये कहीं और हमे इतना प्यार करो ।
हमे चाहिए तुम्हारे साथ चैनो- सुकून ;
हमारे दिल को इस तरह न बेकरार करो।
अब जाये कहां हम तुम बिन;
सितमगर ये सितम हम पर ना बार -बार करो।
हमें है आश आज भी की तुम हो हमारे ;
अब तुम ही दूर ये हमारा खुमार करो ।
बहने दो ये अश्कों के धारे ;
छेड़ कर हमे न बहार ये दिल का गुबार करो।
लो अब जा रहे हैं छोड़कर तुम्हारी दुनिया ;
चलो अब तो अपनी ख़ुशी का इजहार करो।
शुक्रवार, 22 जनवरी 2010
जिन्दगी मोहताज नहीं मंजिलों की
जिन्दगी मोहताज नहीं मंजिलों की;
वक्त हर मंजिल दिखा देता है ।
कुछ बिगड़ता नहीं किसी से बिछुड़कर;
क्योंकि वक्त सबको जीना सिखा देता है।
तूफान मे किस्ती को किनारे भी मिलते हैं;
जहाँ मे लोगों को सहारे भी मिलते हैं।
दुनिया में सबसे प्यारी है जिन्दगी;
कुछ लोग जिन्दगी मे प्यारे भी मिलते हैं।
शुक्रवार, 15 जनवरी 2010
तन्हाई
नमस्कार दोस्तों मै हाजिर हूँ एक नई रचना के साथ नव वर्ष के बाद सन २०१० की प्रथम रचना मेरे काव्य जीवन की प्रथम रचना है।आज मै अपना मोबाइल नंबर इस रचना के साथ प्रदर्शित कर रहा हूँ कोई अगर मुझ से वार्ता करना चाहे तो वह मुझे ९५२८१९२९२९ या ९८३७५७२९२९ पर कॉल कर सकता है ।
तनहा थे हम ; तनहा थी जिन्दगी
अपना कह कर
नई जिन्दगी दे गया कोई।
तनहा थी रातें ; तनहा थे दिन
अपना सपना दे कर
ये कैसी कसक दे गया कोई।
तनहा था मौसम ; तनहा था सावन
हम से मौसम की बात कर
एक नया मौसम दे गया कोई।
हमे अपना बनाया , हमे दिल मै बसाया
और हम से दूर जा कर
फिर से नई तन्हाई दे गया कोई।
तनहा थे हम ; तनहा थी जिन्दगी
अपना कह कर
नई जिन्दगी दे गया कोई।
तनहा थी रातें ; तनहा थे दिन
अपना सपना दे कर
ये कैसी कसक दे गया कोई।
तनहा था मौसम ; तनहा था सावन
हम से मौसम की बात कर
एक नया मौसम दे गया कोई।
हमे अपना बनाया , हमे दिल मै बसाया
और हम से दूर जा कर
फिर से नई तन्हाई दे गया कोई।
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