सोमवार, 22 मार्च 2010

प्रकृति का नज़ारा

प्रकृति को दिल दे महसूस करो.........

हादसा

रोज होते है,हादसे.
शहर में,चोराहो पर, सड़क पर.
हो जाता है भयावह माहोल वहां पर.
होती है चीख-पुकार हर तरफ.
हम भी देखते हैं अक्सर ये मंजर.
और चल देते हैं,
'बहुत बुरा हुआ ' कहकर .
क्योकि हमे है जल्दी अपनी मंजिल पर पहुचने की.
हमे नहीं है फुरसत वहां पर मदद करने की.
नहीं होती है जागृत मानवता हमारी,
उस भयावह मंजर को देख कर.

जब होता है हादसा,
किसी हमारे के साथ,
तो याद आती है मानवता हमको.
लगते हैं, हम हर किसी से मदद की गुहार .
अब नहीं है जल्दी मंजिल पर पहुचने ही,
अब फुरसत है हमे इस मंजेर पर सोचने की.

सोमवार, 15 मार्च 2010

गजल

मेरी बर्बादी का वो जशन मनाएंगे,
रोयेगा ये दिल, पर हम दुनिया को हसाएंगे
दहल जायेगा दिल उनका,
जब दुनिया वाले उन्हें
मेरी मौत का किस्सा सुनाएंगे
हम सुनाएंगे किस्से उनकी बेबफाई के,
वो भी किस्से अपनी बेबफाई के
साथ मेरे गुनगुनाएंगे
करेंगे वो याद हमको रह-रहकर,
जब दुनिया हम उनकी छोड़ जाएंगे
लगाकर आग मेरे घर को,
मेरे जाने के बाद ,
वो घर रकिवों का बसाएंगे.

शुक्रवार, 5 मार्च 2010

गज़ल

बसायी थी दुनिया प्यार की;
वो आज वीरानी हो गयी।
चाहा था जिसे जां से ज्यादा ;
वो अब वेगानी हो गयी।
थी कल तक पागल जो दुनिया के लिए;
वो आज दीवानी हो गयी।
थी बच्ची जो कल तक;
वो शायद शयानी हो गयी।
थामा हाथ उसने रकिवों का;
उनकी जिन्दगी अब सुहानी हो गयी।
करना प्यार की बातें;
शायद अब बेईमानी हो गयी।

बुधवार, 3 मार्च 2010

एक हिंदी वेबसाइट

मुरादाबादी अड्डा के प्रिय पाठको मै एक हिंदी वेबसाइट का निर्माण करने जा रहा हूँ। जहाँ पर उन लोगो को मंच मिलेगा जो कुछ लिखते है परन्तु उन्हें पढने बाले कम मिलते हैं। आप भी इस कम मै मेरा साथ दे सकते है। मै आप के सहयोग की कामना करता हूँ।

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