शुक्रवार, 5 मार्च 2010

गज़ल

बसायी थी दुनिया प्यार की;
वो आज वीरानी हो गयी।
चाहा था जिसे जां से ज्यादा ;
वो अब वेगानी हो गयी।
थी कल तक पागल जो दुनिया के लिए;
वो आज दीवानी हो गयी।
थी बच्ची जो कल तक;
वो शायद शयानी हो गयी।
थामा हाथ उसने रकिवों का;
उनकी जिन्दगी अब सुहानी हो गयी।
करना प्यार की बातें;
शायद अब बेईमानी हो गयी।

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