शुक्रवार, 22 जनवरी 2010

जिन्दगी मोहताज नहीं मंजिलों की

जिन्दगी मोहताज नहीं मंजिलों की;

वक्त हर मंजिल दिखा देता है ।

कुछ बिगड़ता नहीं किसी से बिछुड़कर;

क्योंकि वक्त सबको जीना सिखा देता है।

तूफान मे किस्ती को किनारे भी मिलते हैं;

जहाँ मे लोगों को सहारे भी मिलते हैं।

दुनिया में सबसे प्यारी है जिन्दगी;

कुछ लोग जिन्दगी मे प्यारे भी मिलते हैं।

शुक्रवार, 15 जनवरी 2010

तन्हाई

नमस्कार दोस्तों मै हाजिर हूँ एक नई रचना के साथ नव वर्ष के बाद सन २०१० की प्रथम रचना मेरे काव्य जीवन की प्रथम रचना है।आज मै अपना मोबाइल नंबर इस रचना के साथ प्रदर्शित कर रहा हूँ कोई अगर मुझ से वार्ता करना चाहे तो वह मुझे ९५२८१९२९२९ या ९८३७५७२९२९ पर कॉल कर सकता है ।

तनहा थे हम ; तनहा थी जिन्दगी
अपना कह कर
नई जिन्दगी दे गया कोई।

तनहा थी रातें ; तनहा थे दिन
अपना सपना दे कर
ये कैसी कसक दे गया कोई।

तनहा था मौसम ; तनहा था सावन
हम से मौसम की बात कर
एक नया मौसम दे गया कोई।

हमे अपना बनाया , हमे दिल मै बसाया
और हम से दूर जा कर
फिर से नई तन्हाई दे गया कोई।

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