शनिवार, 13 फ़रवरी 2010

खान हिट शिवसेना फ्लॉप

शुक्रवार को 'माय नेम इज खान' के रिलीज होते ही शिवसेना बोल्ड हो गयी । शिवसेना की सभी धमकियाँ धरी की धरी रह गयीं। इससे पहले राहुल गाँधी को मुंबई आने की धमकी के बाद भी शिवसेना कुछ नहीं कर पाई थी और अब खान की रिलीजिंग को रोकने की धमकी के बाद फिल्म का प्रदर्शन सुचारू रूप से होने के बाद यह शिवसेना के लिए बुरी खबर है। खान की रिलीजिंग पर बबाल खड़ा करने वाली शिवसेना को कुछ भी फायदा होने वाला नहीं है। परन्तु इससे किंग खान यानि शाहरुख़ खानको अब कोई भी बॉलीवुड का किंग होने से नहीं रोक सकता। इस बबाल से जो पब्लिसिटी माय नेम इज खान को मिल गयी है; यह तो खान साहब अब तक अपनी फिल्म को नहीं दिला पाए थे।
अगर अब यह फिल्म रिकार्ड तोड़ कमाई कर दे तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं होगा। अब बात की जाये फिल्म के बारे में तो 9/11 के हादसे के उपर बनी है यह फिल्म। इसमें शाहरुख़ खान ने रिजवान का किरदार निभाया है जो बचपन से 'एसपर्जर' नामक बीमारी का शिकार है। रिजवान काफी बुद्धिमान है ; लेकिन शोर तथा कुछ एक रंगों से उसे बहुत नफरत है। अमेरिका जाने के बाद रिजवान के जीवन मे एक बच्चे की माँ मंदिरा (काजोल) आ जाती है। इसी बीच 9/11 की घटना हो जाती है । इस घटना से भड़क जाती है, नस्लीय हिंसा ! जिस का शिकार रिजवान ही नहीं बल्कि नाम के बाद 'खान' लगने से बच्चे सैम को अपनी जन से हाथ धोना पड़ता है रिजवान इस सबसे परेसान हो कर अमेरिका के रास्ट्रपति से मिलना चाहता है और उनसे कहता है "माय नेम इज खान, बट आय ऍम नोट टेररिस्ट................." और अंत में वो सफल भी हो जाता है।

बुधवार, 3 फ़रवरी 2010

हम पर ये एतबार करो

हम है आप के हम पर ये एतबार करो;
ना जाये कहीं और हमे इतना प्यार करो ।
हमे चाहिए तुम्हारे साथ चैनो- सुकून ;
हमारे दिल को इस तरह न बेकरार करो।
अब जाये कहां हम तुम बिन;
सितमगर ये सितम हम पर ना बार -बार करो।
हमें है आश आज भी की तुम हो हमारे ;
अब तुम ही दूर ये हमारा खुमार करो ।
बहने दो ये अश्कों के धारे ;
छेड़ कर हमे न बहार ये दिल का गुबार करो।
लो अब जा रहे हैं छोड़कर तुम्हारी दुनिया ;
चलो अब तो अपनी ख़ुशी का इजहार करो।

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